Tuesday, October 13, 2009

दिवाली में दीपक

















(सभी को दिवाली की शुभ कामनायें।)

तुम दिवाली में दीपक जलाते रहो
अँधेरा मिटे, न मिटे, साथियो
जुगनुओं की तरह तुम टिमटिमाते रहो
रात काली रहे तो रहे, साथियो
तुम दिवाली.......

सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चाँद निकले, न निकले मेरे साथियो
प्रेम की वर्तिका तुम जलाते रहो
प्रिय आयें न आयें, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......

नृत्य करते हुये तुम थिरकते रहो
प्रिय की वीणा बजे, न बजे, साथियो
पतवार नैया की अपनी चलाते रहो
तट आये, न आये, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......

कदम पे कदम तुम बढ़ाते रहो
राह मीलों पड़ी तो पड़ी, साथियो
निज डगर पर हमेशा ही चलते रहो
कोई साथी मिले, न मिले, साथियो
तुम दिवाली में दीपक....

स्वाद जीवन का लेते रहो तुम सदा
चाहे कड़वा या मीठा, मेरे साथियो
प्रेम के गीत तुम गुनगुनाते रहो
कोई प्रेमी मिले न मिले, साथियो
तुम दिवाली में दीपक....







एहसास





एक भावना,एक माध्यम है
कुछ पाने और कुछ खोने का

कभी ना कर सकी इस भावना का इज़हार
और ना ही कभी किया है इंतज़ार

एसे ही उमड़ पड़ता है
जब कोई चीज़ बहुत हो ज़्यादा,या बहुत कम

दबे पाव आए , आहट भी ना होये
बस एक हलचल महसूस करता है

गम और खुशियों से मिलन करता है
जुड़ ज़्याता है मन से, ज़िंदगी में ,ये अहसास

मेरी ही भावना मुझे थमाता है
और अनकहे ही चला ज़्याता है, ये अहसास

यादें












वक्त बदल जाता है,बदलते बदलते दे जाता है यादें......सिर्फ़ यादें
यादें........
किसी आम की, किसी खास की
किसी मकाम की, किसी अह्सास की

आवाज़ और नज़र के दायरे से दूर
सब बेहे जात है करके हमें मजबूर
और रेहे जाति हैं यादे सिर्फ़ यादें

यादें ......
किसी डगर की, किसी सफ़र की
किसी शेहेर, पेड और मकान की
किसी जहां की, किसी आसमान की
बारीश, सर्दियां और बहार की
किसी दर्द की, किसी प्यार की
किसी नज़र की, किसी मुस्कान की
किसी अन्जान की, और...........
किसी अपना सा लगनेवाले इन्सान की

बस जाते हैं ये सब
दिल में अहसास बनकर
होठों पर मुस्कान बनकर सजते हैं
और आंखों से बूंदें बनकर बरस्ते हैं

समय बेहे जाता है और छोड जात है यादें .....सिर्फ़ यादें

क्या तू मेरा प्यार है ..










जो करता है दिन-रात दुआएँ

क्या तू मेरा प्यार है
जो नींद से जगाता है
तन्हाई में हँसाता है
हँसते-हँसते रूलाता है
बन के स्मृति आँखों में
कैद हो जाता है।

क्या तू मेरा प्यार है
जो मुझ पर हक जताता है
दुनिया की परवाह किए बगैर
मुझे अपनाता है
करता है दिन-रात दुआएँ
मेरी खैरियत की।

क्या तू मेरा प्यार है
जो लड़ जाता है दुनिया से
थाम लेता है जो मुझे
मुसीबतों के भँवर में
कहता है जो बार-बार
सदा निभाऊँगा तेरा साथ।

क्या तू मेरा प्यार है
जिसके लिए जीने को
जी चाहता है
जिसके आगोश में
खो जाने को आतुर हूँ मैं
हाँ, तू वही है ... मेरा सच्चा प्यार।

Monday, October 12, 2009

स्वस्थ आँखें तो रोशन जिंदगी




आँखों की खूबसूरती हमारी सुंदरता में बहुत अधिक महत्व रखती है। काली कजरारी आँखें हर किसी को अपनी और आकर्षित करती हैं।
स्वस्थ आँखें लंबी रोशन जिंदगी की सूचक होती हैं। इनकी अनदेखी हमारी सुंदरता पर भी ग्रहण लगा सकती है। आँखों की ज्योति कम होना, आँख के आसपास काले घेरे होना यह सब कमजोर आँखों के लक्षण हैं।

* रोशनी कहाँ हो गई गुम :-
आजकल तो छोटी सी उम्र में ही बच्चों को बड़े-बड़े चश्में लग जाते हैं और उन्हीं शीशों से झाँकते-झाँकते उनकी उम्र निकल जाती है। कभी किसी को कुछ दिखाई नहीं देता, तो कभी किसी को कम दिखाई देता है और जिसको सब कुछ दिखाई देता है वह आँखों की देखभाल नहीं करता। जिसके कारण इस जीवन को रोशन करने वाली आँखें जल्दी ही अपनी दीप्ति खो देती है।

लगातार टीवी और कम्प्यूटर पर आँखें गड़ाने का सीधा प्रभाव आँखों पर पड़ता है। आँखें हमारे शरीर का वो महत्वपूर्ण व नाजुक अंग है जिसकी उपेक्षा के दूरगामी परिणाम हमारे लिए बहुत बुरे हो सकते हैं।

* रखें इनका ख्‍याल :-
आँखें हैं तो दुनिया रोशन है वरना सब कुछ अंधकारमय है। आँखों के प्रति हमारी लापरवाही हमें महँगी पड़ सकती है। यदि हम आज ही से इनका ख्याल रखना शुरू कर दें तो ये लंबे समय तक हमारी जिंदगी को रोशन कर पाएँगी।

तेज धूप, धूल, केमिकल आदि हमारी आँखों को नुकसान पहुँचाते हैं। इनसे बचने के लिए चश्मा पहनें। आँखों को थोड़ी-थोड़ी देर में ठंडे पानी से धोने से भी आँखों को ठंडक व आराम मिलता है।

* कुछ उपयोगी टिप्स :-
* बार-बार आँखों में साफ पानी के छींटे डालें।
* खीरा ककड़ी के गोल टुकड़े को आँखों पर रखने से आँखों को आराम मिलता है।
* आँखों में गुलाबजल की बूँदें डालना फायदेमंद होगा।
* कम रोशनी में पढ़ने या लिखने का कार्य न करें।
* किताब और आँखों के बीच लगभग 12 इंच की दूरी रखें।
* नग्न आँखों से सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण न देखें।
* आँखों से संबंधित व्यायाम करें।
* पौष्टिक व संतुलित आहार लें।
* भोजन के साथ सलाद अवश्य शामिल करें।
* तेज धूप में बगैर चश्मे के नहीं निकलें।
* हमेशा साफ तौलिये या रुमाल से ही आँखों को पोंछे।



मम्मी-पापा












मेरी मम्मी सबसे अच्छी
मुझे खूब प्यार वो करती
पापा मेरे और भी अच्छे
संग मेरे वो रोज खेलते
सुबह-सवेरे उठ कर आते
प्यार से मुझको दोनों जगाते
मम्मी मेरी खाना बनाती
पापा मुझे तैयार कराते
खुशी-खुशी मैं बस्ता लेता
पापा मुझको छोड़ कर आते
स्कूल से जब मैं पढ़ कर आता
मम्मी से फिर मैं खाना खाता
होम-वर्क मैं अपना करके
गोदी में मम्मी की सो जाता
शाम को जब पापा हैं आते
पार्क में मुझको खेल खिलाते
रात को सोने से पहले मैं
अगले दिन का बैग लगाता
तुम भी मुझ जैसे बन जाओ
पापा-मम्मी के प्यारे बन जाओ
दोनों जब मुझे प्यार हैं करते
दुनिया से न्यारे हैं लगते

बंदर और मगरमच्छ


नदी कूल जामुन तरु पर
रहता एक स्याना बंदर
मीठे-मीठे जामुन खाता
अपने दोस्तों को भी खिलाता
एक बार उस नदी के अंदर
बनाया एक मगर ने घर
कभी-कभी बाहर आ जाता
थोडा बंदर से बतियाता
धीरे-धीरे हो गई यारी
करते बातें प्यारी-प्यारी
बंदर जामुन तोड के लाता
मगरमच्छ को खूब खिलाता
एक बार बोला यूं मगर
ले जाऊंगा जामुन घर
पत्नी बच्चों को भी खिलाऊं
स्वाद जरा उनको भी चखाऊं
तोड दिए बंदर ने जामुन
खुश थे दोनों मन ही मन
चला मगर अब जामुन लेकर
खिलाए पत्नी को जा घर
खाकर मीठे मीठे जामुन
ललचाया पत्नी का मन
खाए रोज जो ऐसे फल
कैसा होगा उसका दिल
पत्नी मन ही मन ललचाई
मगर को इक तरकीब बताई
ले आओ तुम उसे जो घर
मार के खाएंगे वो बंदर
मगर भी अब बातों मे आया
जा बंदर को कह सुनाया

बैठ जाओ तुम मेरे ऊपर
दिखाऊंगा तुम्हें अपना घर
मानी बंदर ने भी बात
ले ली जामुन की सौगात
बैठ गया वो मगर के ऊपर
चलने लगा मगर जल पर
आया बंदर को ख्याल
किया मगर से एक स्वाल
दिखाना क्यों चाहते हो घर ?
क्या कुछ खास तेरे घर पर
नासमझी मे मगर यूँ बोला
सारा भेद ही उसने खोला
मेरी पत्नी से लो मिल
खाना चाहती है तेरा दिल
सुनकर बंदर हुआ आवाक
पर वो तो था बहुत चालाक
बोला पहले क्यों न बताया
दिल मै घर पर छोड के आया
चलो अभी वापिस जाएंगे
दिल उठाकर ले आएंगे
मुडा मगर वापिस सुनकर
नदी किनारे पर जाकर
कूद गया बंदर तरु पर
कहने लगा ऊपर जा कर
तेरा न कोई बुद्धि से नाता
दिल भी कभी कोई छोड के जाता
जाओ अब यहां कभी न आना
मुझे न तुमको दोस्त बनाना

भीखू चूहा और बहादुर शेर









बच्चो, आओ आज मैं आप सबको एक चूहे और एक शेर की कहानी सुनाती हूँ।

एक बहुत घना जंगल था जिसमें तरह-तरह के तमाम सारे जानवर रहते थे और वहां पर चूहों की भी एक बड़ी सी कालोनी थी जहाँ का लीडर एक मोटा सा चूहा था जो एक पेड़ के नीचे अपना बिल बना कर रहता था। उस चूहे का नाम था भीखू। उस जंगल में एक बहुत ही खूंखार शेर भी रहता था जिसका नाम था बहादुर। वह अपने परिवार के साथ जंगल के बीच में एक ऊंची सी गुफा में रहता था। आये दिन वह शेर बड़ा उत्पात मचाता रहता था। जब कभी भूख लगती तो किसी छोटे या बड़े जीव को खा जाता था। सभी जानवर उससे बड़े सहमे और डरे हुये से रहते थे।

एक दिन की बात है। वह मोटा चूहा जो अपने बिल में एक पेड़ के नीचे रहता था, चारों तरफ झाँककर तसल्ली कर लेने के बाद कि उस शेर बहादुर का कहीं दूर तक पता नहीं है, अपने बिल से निकल कर आया और गर्मीं के मारे परेशान होकर पेड़ के नीचे एक हरे पत्ते को ओढ़कर सो गया। उसने सोचा की पत्ते को ओढ़ लेने के बाद उसे शेर या कोई और जानवर नहीं देख पायेगा। वह आराम से कुछ घंटे तक सोता रहा।

अब इतनी गर्मी में शेर कहाँ अपनी माद में बैठा रह सकता था। सो वह भी टहलते-घूमते उस तरफ आ गया। उस पेड़ के नीचे से गुजर रहा था कि चूहे ने एक बड़ी जोर की चीख मारी। लगता था कि शेर का पंजा चूहे की पूँछ पर पड़ गया था। बहादुर वहीं खडा हो गया और जोर से गरजा। चूहे की तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी और काँपने लगा तथा जान बचाने के लिये भागने लगा। किन्तु शेर ने देख लिया और अपने पंजे में दबोच लिया। शेर ने कहा ''अब मैं तुझे खा जाऊँगा''। चूहा रोने लगा और मिन्नतें करने लगा, '' हे वनराज, आप मुझ पर दया करो मैं निर्बल हूँ और आप बहुत ताकत वाले हो, और फिर मेरे नन्हे से शरीर को खाकर तुम्हारा पेट भी ना भरेगा''। शेर ने कुछ सोचा और कहा, '' अगर मैं तुझे छोड़ दूं तो तू मुझे बदले में क्या देगा''? चूहा बोला, '' सरकार अब आपसे क्या तकरार करुँ बस इतना कह सकता हूँ कि मुझपर आपका यह अहसान एक क़र्ज़ की तरह होगा और मैं इसे सही मौका आने पर चुकाने की कोशिश करूँगा.....आज आप मुझे जाने दें। घर में मेरे बीबी बच्चे इन्तजार कर रहे होंगे, उनका इस दुनिया में मैं अकेला सहारा हूँ। अगर आपने मुझे खा लिया तो उन सबका क्या होगा''? शेर ने चूहे को छोड़ दिया और चूहा शेर को दुआयें देता हुआ सर पर पैर रखकर सरपट अपने बिल में भाग गया।

काफी दिन बीत गये और अब वह चूहा और शेर मित्र बन गये थे। वह शेर जंगल के और जानवरों पर तो हमला करता था किन्तु उस चूहे को नजरअंदाज कर देता था। इसीलिये वह चूहा अब चैन की साँसें लेता हुआ आराम से इधर-उधर मस्ती में अपना रोब दिखाता हुआ टहलता रहता था। शेर से दोस्ती करने का सब जानवरों पर अपनी शान झाड़ता रहता था। एक दिन जंगल में कुछ आदिवासी लोग आये और जानवरों का शिकार करने के लिये जंगल में एक जगह बड़ा सा गड्ढा खोदा और उसे तमाम झाड़-फूंस से भर दिया और एक पेड़ में रस्सी बाँध कर उसके एक छोर में फंदा बनाया और गड्ढे पर के सूखे पत्तों पर उस फंदे को रख दिया और उसे भी पत्तों से छिपा दिया। और वे लोग अगले दिन को आने की सोच कर चले गये। थोडी देर में दो लोमड़ियाँ उधर आयीं और गड्ढे में गिर गयीं उनके शरीर में तमाम कांटें चुभे और वह बेहोश होकर गड्ढे में ही पड़ीं रहीं। फिर थोडी देर में वह शेर भी घमंड से अपनी गर्दन ऊंची किये हुये इधर-उधर देखता वहां से दहाड़ता हुआ निकला और फिर......धम्म!! उसका पैर फंदे में जाकर फंस गया था और नतीजा यह हुआ की वह उल्टा लटक गया। अब तो शेर की पूछो न....दहाड़ मार कर उसने जंगल हिला दिया। दोनों लोमड़ियों को जब होश आया और शेर की नजदीकी का अहसास हुआ तो वह दम साधे चुपचाप गड्ढे में ही पड़ी रहीं। जब चूहे ने शोर सुना तो वह अपने बिल के बाहर निकल कर शोर की दिशा में चलता हुआ जा पहुंचा। और देखा की शेर लाचार होकर उल्टा लटका है और रह-रह कर गर्जना कर रहा है। शेर ने जैसे ही चूहे को देखा तो उसे पास बुलाया और कहा कि वह कुछ करे। चूहे ने कहा, '' तुम कोई चिंता ना करो एक दिन तुमने मेरी जान बख्शी थी और आज तुम मुसीबत में हो तो अब मेरा फ़र्ज़ बनता है की इस मुसीबत के समय मैं तुम्हारी सहायता करुँ''। चूहा रस्सी के सहारे शेर तक पहुँच गया और उसने शेर के पैरों में फंसे फंदे को अपने दांतों से कुतर दिया और फिर एक बार आवाज़ हुई धम्म !! क्योंकि शेर अब फंदे से मुक्त होकर जमीन पर आ गिरा था। शेर चूहे की ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ और चूहे के सर से भी अहसान का बोझ उतर गया था। दोनों ही बहुत खुश थे।

तो बच्चों इस कहानी का अभिप्राय यह है कि कोई भी शरीर से बड़ा होने पर पूरी तरह से बलवान नहीं होता और कोई भी शरीर से छोटा होने पर भी पूरी तरह से बेवकूफ नहीं होता छोटों में भी अकल होती है। इसीलिये आप लोगों ने शायद यह कहावत भी सुनी होगी की ''अकल बड़ी या भैंस''। और इस कहानी से यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें बहुत कठोर दिल का नहीं होना चाहिये और मुसीबत के समय एक दूसरे के काम आना चाहिये।


गुस्सा












गुस्सा बहुत बुरा है। इसमें जहर छुपा है।

मीठी बोली से सीखो तुम, दुश्मन का भी मन हरना
जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना।

गुस्सा बहुत बुरा है। इसमें जहर छुपा है।

बाती जलती अगर दिए में, घर रोशन कर देती है
बने आग अगर फैलकर, तहस नहस कर देती है।

बहुत बड़ा खतरा है बच्चों गुस्सा बेकाबू रहना।
जल्दी से सीखो---

खिलते हैं जब फूल चमन में, भौंरे गाने लगते हैं
बजते हैं जब बीन सुरीले, सर्प नाचने लगते हैं।

कौए-कोयल दोनों काले किसको चाहोगे रखना।
जल्दी से सीखो--

करता सूरज अगर क्रोध तो सोंचो सबका क्या होता
कैसी होती यह धरती और कैसा यह अंबर होता।

धूप-छाँव दोनों हैं पथ में, किस पर चाहोगे चलना।
जल्दी से सीखो----

करती नदिया अगर क्रोध तो कैसी होती यह धरती
मर जाते सब जीव-जन्तु, खुद सुख से कैसे रहती।

जल-थल दोनों रहें प्यार से या सीखें तुम से लड़ना।
जल्दी से सीखो--

इसीलिए कहता हूँ बच्चों, क्रोध कभी भी ना करना
जब तुमको गुस्सा आए तो ठंडा पानी पी लेना।

हर ठोकर सिखलाती हमको, कैसे है बचकर चलना।
जल्दी से सीखो---

बच्चों का बदलता मनोविज्ञान

यदि अपने आसपास नज़र डाली जाये, आसपास ही क्यों यदि अपने घरों में भी झांका जाये तो साफ़ पता चल जाता है कि बच्चे अब बहुत बदल रहे हैं हां ये ठीक है कि जब समाज बदल रहा है, समय बदल रहा है तो ऐसे में स्वाभाविक ही है कि बच्चे और उनसे जुडा उनका मनोविज्ञान, उनका स्वभाव, उनका व्यवहार ..सब कुछ बदलेगा ही। मगर सबसे बडी चिंता की बात ये है कि ये बदलाव बहुत ही गंभीर रूप से खतरनाक और नकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर है। आज नगरों , महानगरों में तो बच्चों मे वो बाल सुलभ मासूमियत दिखती है ही उनके उम्र के अनुसार उनका व्यवहार।कभी कभी तो लगता है कि बच्चे अपनी उम्र से कई गुना अधिक परिपक्व हो गये हैं। ये इस बात का ईशारा है कि आने वाले समय में जो नस्लें हमें मिलने वाली हैं..उनमें वो गुण और दोष ,,स्वाभाविक रूप से मिलने वाले हैं , जिनसे आज का समाज ,बालिग समाज खुद जूझ रहा है।
बच्चों के बदलते व्यवहार और मनोविज्ञान पर शोध कर रही संस्था ,"बालदीप" ने अपने सर्वेक्षण और अध्ययन के बाद तैयार की गयी रिपोर्ट में इस संबंध में कई कारण और परिणाम सामने रखे हैं।बदलते परिवेश के कारण आज सिर्फ़ बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अवयव्स्थित हो रहे हैं बल्कि आश्चर्यजनम रूप से जिद्दी , हिंसक और कुंठित भी हो रहे हैं। पिछले एक दशक में ही ऐसे अपराध जिनमें बच्चों की भागीदारी थी ,उनमें लगभग सैंतीस प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। इनमें गौर करने लायक एक और तथ्य ये है कि ये प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा, नगरीय क्षेत्र में अधिक रहा है। बच्चे सिर्फ़ आपसी झगडे, घरों से पैसे चुराने, जैसे छोटे मोटे अपराधों मे लिप्त हो रहे हैं..बल्कि चिंताजनक रूप से नशे, जुए, गलत यौन आचरण,फ़ूहड और फ़ैशन की दिखावटी जिंदगी आदि जैसी आदतों में भी पडते जा रहे हैं।संस्था के अनुसार ऐसा नहीं है कि बच्चों मे आने वाले इस बदलाव का कोई एक ही कारण है। उन्होंने सिलसिलेवार कई सारे कारणों का हवाला देकर इसे साबित किया


इनमें पहला कारण है बच्चों के खानपान में बदलाव। आज समाज जिस तेजी से फ़ास्ट फ़ूड या जंक फ़ूड की आदत को अपनाता जा रहा है उसके प्रभाव से बच्चे भी अछूते नहीं हैं। बच्चों के प्रिय खाद्य पदार्थों में आज जहां, चाकलेट, चाऊमीन, तमाम तरह के चिप्स, स्नैक्स, बर्गर, ब्रेड आदि शामिल हो गये हैं वहीं, फ़ल हरी सब्जी ,साग दूध, दालें जैसे भोज्य पदार्थों से दूरी बनती जा रही है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि बच्चे कम उम्र में ही मोटापे, रक्तचाप, आखों की कमजोरी,और उदर से संबंधित कई रोगों का शिकार बनते जा रहे हैं।


बच्चों के खेल कूद, मनोरंजन, के साधनों,और तरीकों में बद्लाव । एक समय हुआ करता था जब अपने अपने स्कूलों से आने के बाद शाम को बच्चे अपने घरों से निकल कर आपस में तरह तरह के खेल खेला करते थे। संस्था के अनुसार वे खेल उनमें न सिर्फ़ शारीरिक स्वस्थता, के अनिवार्य तत्व भरते थे, बल्कि आपसी सहायोगिता, आत्मनिर्भरता, नेत्र्त्व की भावना जैसे मानवीय गुणों का संचार भी करते थे। आज के बच्चों के खेल कूद के मायने सिर्फ़ टेलिविजन, विडियो गेम्स, कंप्यूटर गेम्स आदि तक सिमट कर रह गये हैं। और तो और एक समय में बच्चों को पढने सीखने में सहायक बने कामिक्स भी आज इतिहास बन कर रह गये हैं। जबकि ये जानना शायद दिलचस्प हो कि पश्चिमी देशों मे अभी भी बच्चों द्वारा इन्हें खूब पसंद किया और पढा जाता है ।

भारतीय बच्चों मे जो भी नैतिकता, व्यवहार कुशलता स्वाभाविक रूप से आती थी, उसके लिये उनकी पारिवारिक संरचना बहुत हद तक जिम्मेदार होती थी। पहले जब सम्मिलित परिवार हुआ करते थे., तो बच्चों में रिशतों की समझ, बडों का आदर, छोटों को स्नेह, सुख दुख , की एक नैसर्गिक समझ हो जाया करती थी। उनमें परिवार को लेकर एक दायित्व और अपनापन अपने आप विकसित हो जाता था। साथ बैठ कर भोजन, साथ खडे हो पूजा प्रार्थना, सभी पर्व त्योहारों मे मिल कर उत्साहित होना, कुल मिला कर जीवन का वो पाठ जिसे लोग दुनियादारी कहते हैं , वो सब सीख और समझ जाया करते थे। संस्था ने इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज जहां महानगरों मे मां-बाप दोनो के कामकाजी होने के कारण बच्चे दूसरे माध्यमों के सहारे पाले पोसे जा रहे हैं , वहीं दूसरे शहरों में भी परिवारों के छोटे हो जाने के कारण बच्चों का दायरा सिमट कर रह गया है ।


इसके अलावा बच्चों में अनावश्यक रूप से बढता पढाई का बोझ, माता पिता की जरूरत से ज्यादा अपेक्षा, और समाज के नकारात्मक बदलावों के कारण भी उनका पूरा चरित्र ही बदलता जा रहा है । यदि समय रहेते इसे न समझा और बदला गया तो इसके परिणाम निसंदेह ही समाज के लिये आत्मघाती साबित होंगे।